वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण होम

वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के 75 जिलों के छियालीस हजार उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं के लिए वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया है। वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में पढ़ने वाली कक्षा छह से आठ की छात्राओं के लिए भी है। छात्राओं को प्रशिक्षण देने के लिए स्कूलों के शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों को उत्तर प्रदेश सरकार के आत्मरक्षा प्रशिक्षकों द्वारा निर्देशित और प्रशिक्षित किया जाएगा। लगभग ग्यारह हजार शारीरिक शिक्षा शिक्षक/प्रशिक्षक पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को प्रशिक्षित करेंगे। योजना शुरू होने के बाद सभी स्कूलों के शिक्षकों को प्रतिदिन एक घंटे की सत्र अवधि के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाएगा। सबसे पहला लक्ष्य इन ग्यारह हजार शारीरिक शिक्षा शिक्षकों/प्रशिक्षकों को 75 जिलों में 6 दिनों के प्रशिक्षण सत्र में प्रशिक्षित करना है। वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण में सभी बुनियादी तकनीकें, शारीरिक व्यायाम, स्टंट और योग आसन शामिल होंगे।

उद्देश्य

वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य छात्राओं को आत्मरक्षा के लिए आवश्यक ज्ञान और शारीरिक प्रशिक्षण प्रदान करना है जो आज के समय में अति आवश्यक है। इस परियोजना के लक्ष्यों की संक्षिप्त समझ प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित बिंदु महत्वपूर्ण हैं-

  • आत्म-स्वतंत्रता की भावना विकसित करना और उन्हें सशक्त बनाना।
  • महिलाओं के विरुद्ध अपराध और घरेलू हिंसा से संबंधित कानूनों और प्रावधानों के बारे में शिक्षित करना।
  • उन्हें यह सोचने में सक्षम बनाना कि उनके लिए क्या आवश्यक और स्वस्थ है (उदाहरण के लिए, अच्छे और बुरे स्पर्श के बीच का अंतर)।
  • राज्य में संचालित महिला हेल्पलाइन के बारे में जागरूकता फैलाना और इससे उन्हें कैसे लाभ हो सकता है यह भी बताना
  • यह सुनिश्चित करना कि वह अपने और अन्य लड़कियों के लिए जो शिक्षा से वंचित हैं या हिंसा से पीड़ित हैं उनके लिए स्टैंड लें

प्रशिक्षण के परिणाम

वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण के विभिन्न लाभ हैं। छोटी उम्र से ही यह लड़कियां आत्मरक्षा की तकनीक, बेसिक्स और अन्य स्टंट करना सीख लेंगी।

वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम पर आयोजित कार्यशाला में प्रशिक्षण के परिणाम इस प्रकार हैं:

  • छात्राओं को हिंसा के विभिन्न रूपों के बारे में बताया जाएगा घर या बाहर कहीं भी महिलाओं या लड़कियों के साथ हो सकती है।
  • छात्राओं को विभिन्न वस्तुओं के उपयोग से वास्तविक दुर्व्यवहार, जंगलीपन, गलत काम के लिए उत्पीड़ित होने पर हमलावर की कमजोरियों पर हमला करके स्वयं को बचाने के लिए सबसे कुशल तरीके से अलग-अलग आत्म-सुरक्षा युक्तियाँ प्राप्त होंगी |

आत्मरक्षा का महत्व

  1. बेहतर फोकस
    सेल्फ-डिफेंस आपको फोकस और एकाग्रता देता है। नतीजतन, यह आपको स्वयं पर बेहतर ध्यान केंद्रित करना और किसी भी तरह की स्थिति से बचना या उससे निपटना सिखाता है।
  2. आत्मविश्वास
    आत्मरक्षा आपको आत्मविश्वास देती है और आपके डर पर नियंत्रण करती है और आत्मविश्वास ही सभी मुसीबतों से पार पाने का विकल्प है। इससे अधिक शक्तिशाली कुछ भी नहीं है। आत्मरक्षा आपको वह उपकरण और कौशल प्रदान करती है जिनकी आपको किसी भी खतरे की स्थिति में होने पर स्वयं की मदद करने के लिए आवश्यकता होगी।
  3. शारीरिक स्वास्थ्य
    आत्मरक्षा शरीर को प्रशिक्षित करने, कैलोरी जलाने और शारीरिक फिटनेस में सुधार करने का एक शक्तिशाली तरीका प्रदान करती है। व्यायाम आपके मूड को बेहतर बनाने में भी मदद करता है। यह उन लोगों की भी मदद करता है जो अवसाद और अन्य मुद्दों से जूझ रहे हैं।
  4. शारीरिक कौशल विकास
    यह आपको हमले के दौरान स्वयं को बचाने के लिए बुनियादी चालें और अधिक जटिल आक्रमण करने की क्षमता देता है।

आत्मरक्षा

किसी भी व्यक्ति के जीवन में स्वतंत्रता और सुरक्षा दो महत्वपूर्ण मानदंड होते हैं। स्वतंत्रता हमारा मूल अधिकार है जबकि सुरक्षा हमें आपातकालीन स्थितियों से बचाने में मदद करती है। स्वतंत्रता के साथ-साथ सुरक्षा भी हमारा अधिकार है, और यह अधिकार हमारे स्वयं सुरक्षित रहने की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करता है।

आज के समय में, जहां असुरक्षा की स्थिति एक आम बात हो गई है वहां स्वतंत्रता और सुरक्षा का महत्व बढ़ गया है। स्वयं की सुरक्षा का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है, और इसके लिए स्वतंत्रता और सुरक्षा के तरीकों का ज्ञान भी होना आवश्यक है। आत्मरक्षा एक ऐसी कला है जिसका उपयोग करके व्यक्ति स्वयं को आपातकालीन स्थितियों में बचा सकता है।

आत्मरक्षा के तरीकों का ज्ञान होना बालिकाओं को भी विभिन्न खतरनाक पस्थितियों के लिए तैयार करता है।

आत्मरक्षा के प्रशिक्षण से बालिकाएं किसी भी हमले या संकट से स्वयं को बचा सकती हैं। आत्मरक्षा के ज्ञान से बालिकाएं किसी भी परिस्थिति जैसे चोरी, डकैती, व अपराधिक घटना या अत्याचार के विरुद्ध स्वयं की रक्षा कर सकती हैं।

आत्मरक्षा अधिकार के सिद्धांत

  • आत्मरक्षा का अधिकार स्वयं की रक्षा या आत्मसुरक्षा का अधिकार है। इसका मतलब प्रतिरोध या सजा देना नहीं है।
  • यह अधिकार सिर्फ तब तक ही उपलब्ध हैं जब तक कि स्वयं के शरीर अथवा संपत्ति को खतरा हो या खतरे की आशंका हो ।

सेल्फ डिफेंस यानी आत्मरक्षा का मतलब है कि कोई भी व्यक्ति अपने शरीर या फिर अपनी संपत्ति को बचाने के लिए लड़ सकता है।

  • व्यक्ति स्वयं की रक्षा किसी भी हमले या संकट के विरुद्ध कर सकता है ।
  • व्यक्ति स्वयं की संपत्ति की रक्षा किसी भी चोरी, डकैती, व अपराधिक अत्याचार के विरुद्ध कर सकता है।
  • माता-पिता या परिवार पर हमले की परिस्थिति में भी कानून हाथ में लिया जा सकता है।

हथियार के प्रयोग के लिए जान का खतरा होना जरूरी

सेल्फ डिफेंस में अगर किसी पर गोली चलाई गई हो तो यह साबित करना होगा कि गोली चलाए बिना उसकी स्वयं की जान नहीं बच सकती थी। अगर कुछ अपराधी हथियारों के साथ किसी के घर में लूट-पाट अथवा चोरी के इरादे से घुसते हैं तो ऐसी स्थिति में निश्चित तौर पर घर के मालिक की जान को खतरा हो सकता है। ऐसी सूरत में घर का मालिक जान -माल की रक्षा के लिए अपने लाइसेंसी हथियार से गोली चला सकता है और इस गोलीबारी में अगर किसी अपराधी की मौत हो जाए तो घर का मालिक सेल्फ डिफेंस यानी आत्मरक्षा की दलील दे सकता है। ऐसी स्थिति में अदालत यह देखेगी कि क्या वाकई अपराधी हथियारों से लैस थे। अगर कोई सेंधमार चोरी के इरादे से घर में घुसता है तो ऐसी सूरत में उस पर गोली चलाना सेल्फ डिफेंस के दायरे से बाहर होगा क्योंकि ऐसी सूरत में उसे रोकने के लिए डंडे आदि से पीटने से भी बचाव हो सकता था।

आत्मरक्षा रक्षा का महत्व

आत्मरक्षा हमारी दिनचर्या में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे हमें अपनी सुरक्षा और सुरक्षा के साथ-साथ एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर व्यक्ति बनने में सहायता मिलती है। आत्मरक्षा न केवल शारीरिक बल और क्षमताओं का विकास करता है, बल्कि यह हमारे मन को भी स्थिर और आत्मविश्वासपूर्ण बनाने में सहायक होता है।

  • सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आत्मरक्षा हमें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाती है।
  • यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करती है और रक्षा करने की योग्यता को बढ़ाती है।
  • नियमित आत्मरक्षा कार्यक्रमों में शामिल होने से हमारा शरीर ताकतवर बनता है और सुचारू ढंग से चलने की भी एक आदत बनती है।
  • हमारी शारीरिक क्षमता बढ़ती है और हमें स्वयं को खतरों से बचाने की क्षमता प्राप्त होती है।
  • आत्मरक्षा हमें आत्मविश्वास और सामरिक मानसिकता प्रदान करती है ।

आत्मरक्षा का महत्व

आज हम जिस तरह की दुनिया में रहते हैं, उसमें बालिकाओं के लिए आत्मरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। हमारे समाज में बालिकाओं एवं महिलाओं को आमतौर पर एक अबला के रूप में देखा जाता है और उनको आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। भारत जैसे देश में लैंगिक हिंसा से संबंधित मामलों में निरन्तर बढ़ोत्तरी हो रही हैं जिनमें से ज्यादातर पीड़ित इस प्रकार की हिंसा के खिलाफ कोई शिकायत भी दर्ज नहीं कराते हैं । ऐसी स्थिति में महिलाओं के लिए आत्मरक्षा पहले से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण विषय बन गया है।

आत्मरक्षा प्रशिक्षण प्रदान करने वाले विभिन्न पाठ्यक्रम निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण हैं -

  • व्यक्तित्व में सुधार
    यह पाठ्यक्रम किसी भी व्यक्तिगत विश्वास प्रणाली से नहीं जुड़े हैं, जिसका आप स्वयं विश्वास करते हैं और आपको अपने व्यक्तित्व को विकसित करने में सक्षम बनाते। जो प्रशिक्षण आप को दिया जाता है आपको बेहतर आत्म-सम्मान प्रदान करता है और इसका आपके व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • फोकस
    आपके प्रशिक्षण के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक संतुलन और ध्यान केंद्रित करना है। यह दोनों ही तत्व आपके प्रशिक्षण का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। अपेक्षित संतुलन या फोकस के बिना, आप किसी भी विधि को सीखने की स्थिति में नहीं होंगे, यही कारण है कि इससे पहले कि आप अपने आप को बचाने के तरीकं को सीखने के लिए आगे बढ़ने से पहले संतुलन और ठीक से ध्यान केंद्रित करना सीख लें ।
  • शारीरिक कंडीशनिंग
    किसी भी आत्मरक्षा विधि का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आप किसी के खिलाफ प्रभावी ढंग से अपना बचाव करने में सक्षम हैं। पाठ्यक्रम का एक हिस्सा आपको प्रभावी शारीरिक दक्षता प्रशिक्षण का रखना है जो आपको शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से तैयार करता है ताकि आप अपने प्रतिद्वंद्वी का मुकाबला उससे विचलित हुए बगैर करने में सक्षम हों।
  • आत्म-जागरूकता
    आत्म-रक्षा के बारे में सीखने का एक सकारात्मक पहलू यह है कि आप अपने परिवेश के साथ अधिक मजबूती से जुड़ जाते हैं और परिणामस्वरूप, अधिक आत्म-जागरुक हो जाते हैं। सावधान रहें क्योंकि अक्सर आप पर खतरा पीछे से भी आ सकता है, इसलिए यह एक अच्छी बात है कि आप अपने आस-पास के वातावरण के बारे में अधिक आत्म-जागरूक हो जाएं।
  • आत्म-सम्मान
    इनमें से अधिकांश आत्म-रक्षा की विधियां आपको आत्म-सम्मान की आवश्यकता के बारे में सिखाती हैं । यह आपको अनावश्यक जोखिम लेने से रोकने में भी मदद कर सकता है और इस प्रक्रिया में आपके जीवन को बचाने में मदद कर सकता है।
  • व्यक्तिगत विकास
    इन कक्षाओं में शामिल होने से आपके व्यक्तित्व को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। यह आपको लक्ष्य निर्धारण के महत्व के बारे में सिखा सकता है और यह भी कि आपको अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता क्यों है। आखिरकार, सफलता किसी के लिए भी आसान नहीं होती है और लक्ष्य निर्धारण के साथ आप इसके बारे में कुछ करने में सक्षम होंगे।

तो यह कुछ कारण हैं जो बताते हैं कि क्यों आत्मरक्षा की कक्षाएं महत्वपूर्ण हैं। इसलिए शिक्षा संस्थानों को चाहिए कि अपने छात्रों को इनमें से कुछ पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए प्रोत्साहित करें। सही पाठ्यक्रम के साथ आप अपने व्यक्तित्व को संशोधित करने और अधिक आत्मविश्वास जगाने में सक्षम होंगे।

महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराध के प्रति समाज का दृष्टिकोण

भारत में बालिकाओं एवं महिलाओं के विरुद्ध बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण और हत्या आदि अपराध सबसे अधिक होते हैं। इसके अलावा भारतीय बालिकाएं एवं महिलाएं तेजाब से होने वाले हमलों और छेड़छाड के खतरों से भी स्वयं को असुरक्षित महसूस करती हैं। वर्तमान में लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है कि वह किसी भी पीड़िता के साथ हो रही हिंसा को अनदेखा कर देते हैं और कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर ही घटनास्थल से चले जाते हैं। क्या हमें एक स्वतंत्र देश के जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहने का अहसास नहीं होता है क्योंकि बालिकाओं एवं महिलाओं के विरुद्ध हो रही उत्पीड़न की यह छोटी -छोटी घटनाएं बड़े-बड़े अपराधों का रूप भी ले सकती हैं और इन्हें उसी समय रोका जा सकता है । ऐसा तब ही संभव है जब बालिकाएं एवं महिलाएं स्वयं आत्म-रक्षा तकनीक को सीखने के महत्व को समझे।

विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि अपराधी अपने लक्ष्य का चुनाव ऐसे समय में करते हैं जब उनका संभावित शिकारी आसपास के हालात से पूरी तरह बेखबर होता है। इसलिए अब समय आ गया है जब प्रत्येक महिला को जागरूक और अपने आसपास के परिवेश से पूरी तरह से अवगत कराया जाए।

महिलाओं को विपरीत परिस्थितियों में अपनाई जाने वाली विभिन्न रणनीतियों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर आप इस तरह के हमले के दौरान घर पर अकेली हैं, तो आपको जल्दी से रसोई की तरफ भागना चाहिए और वहाँ से आपको मिर्च पाउडर या चाकू को अपने बचाव के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। आत्मरक्षा की क्षमता रखने से आत्म सम्मान व आत्मविश्वास बढ़ता है |

आत्मरक्षा के लिए कुछ त्वरित युक्तियाँ और सुझाव –

  1. पहले विनम्र होने का नाटक करें और जब हमलावर का ध्यान थोड़ा भटके, तो वापस लड़ें।
  2. तेजी से भागने के लिए अपने शरीर को पर्याप्त रूप से सही स्थिति में रखें।
  3. सड़क पर चलते समय गले से चेन खींचने वालों से बचने के लिए थोड़ी-थोड़ी देर बाद पीछे मुड़कर देखती रहें और सतर्क रहें।
  4. पर्स को अपने सामने रखें और अपने आसपासा के वातावरण का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ें।
  5. जब आपको एक लंबी दूरी तय करनी हो और अज्ञात इलाकों से गुजरना पड़े तो ऊँची एड़ी की चप्पल पहनने से बचें।
  6. जब जरूरत हो तो जोर से और आक्रामक आवाज में ‘स्टॉप’ कहें, लेकिन धमकियों का इस्तेमाल करने से बचें।

रानी लक्ष्मी बाई

झांसी की महरानी वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और पेशवा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की महिला थीं । लक्ष्मीबाई की मां की मृत्यु जल्दी ही हो गयी थी । क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में ही शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की भी शिक्षा ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासक राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें एक बालक को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लेने की सलाह दी गयी। पुत्र को गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

उधर ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़पो नीति के तहत बालक दामोदर राव को गोद लेने के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा कर दिया। मुक़दमे में बहुत बहस हुई और अंत में इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और लक्ष्मीबाई के पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।

झाँसी 1857 के स्वंतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी उनकोसेना में प्रमुख स्थान दिया गया।

1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में झांसी शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया परन्तु रानी अपने पुत्र दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल रहीं। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिलीं।

तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।

योग

योग इस समय सबसे ज्यादा प्रचलित शब्द है। योग को आध्यात्मिक अनुशासन भी कहा जाता है जो एक सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित है जिसका उद्देश्य शरीर और मन के बीच सामंजस्य स्थापित करना है। इसे स्वस्थ जीवन प्राप्त करने का विज्ञान और कला भी कहा जाता है। योग शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द युज से मानी जाती है। युज का अर्थ है जुड़ना।

योग सबके लिए है । बच्चों और वृद्धों द्वारा भी इसका अभ्यास किया जाता है। योग में जटिल उपकरणों का कोई उपयोग नहीं है, । योग न सिर्फ मन को आराम देता है बल्कि शरीर को भी लचीलापन देता है। छात्रों को उनके पाठ्यक्रम में योग के लाभ के बारे में भी बताया जाता है।

योग एक ऐसी प्रथा है जो हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसकी जड़ें भारत में हैं। अतीत में, लोगों को लंबा और स्वस्थ जीवन जीने के लिए नियमित रूप से योग और ध्यान करने की आदत थी। हांलाकि बढ़ती भीड़ और लोगों की व्यस्तता से योग की लोकप्रियता बीच में कुछ कम हुई थी जो फिर से बढ़ गई है। योगाभ्यास बेहद सुरक्षित है और सभी उम्र, के लोग यहां तक कि बच्चे भी इसका आनंद ले सकते हैं। जब हम शांत मन के साथ गहन चिंतन में होते हैं तो हम स्वयं को अपने भीतर से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। योग के अभ्यास से शरीर, मन और आत्मा तीनों का संतुलन प्राप्त होता है।

योग आध्यात्मिक व्यायाम का एक प्राचीन स्वरूप है जो हमारे शरीर और दिमाग को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। इसकी उत्पत्ति 500 ईसा पूर्व की मानी जाती है जब इसे ऋग्वेद में लिखा गया था। ऋगवेद हिंदुओं का एक पवित्र ग्रंथ है। ऐसा माना जाता है कि योग का अभ्यास प्राचीन काल में भारतीय पुजारियों द्वारा अत्यधिक अनुशासन के साथ किया जाता था। वे कई दिनों तक बिना भोजन या पानी के गहन ध्यान में बैठे रहते थे। आज के समय में योग में कुछ आसन या पोज़ ऐसे हैं जिनका अभ्यास आसानी से किया जा सकता है। कुछ जटिल आसन भी हैं, जिनके लिए काफी अभ्यास और लचीलेपन की जरूरत होती है। योग एक ऐसी विद्या है जिसका अभ्यास हर आयु के लोग कर सकते हैं, चाहे वह युवा हों या वृद्ध। कुछ लोग योग को एक कला के रूप में भी वर्णित करते हैं। ऐसा विशेषज्ञ योग चिकित्सकों के पास विशेष कौशल के कारण कहा जाता है। हमेशा सलाह दी जाती है कि आप चटाई पर बैठकर योग का अभ्यास करें।

  • योग की उत्पत्ति भारत में हिंदू धर्मग्रंथों से हुई है और दुनिया भर में इसका अभ्यास किया जाता है।
  • अब लोग समझ गए हैं कि योग किस तरह से व्यायाम करने और मन को शांत करने में मदद करता है।
  • योग को केवल व्यायाम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसे स्वस्थ, सुखी और शांतिपूर्ण जीवन का मंत्र मानना चाहिए।
  • योग के अभ्यास से व्यक्ति मानसिक शांति और अच्छा स्वास्थ्य पा सकता है।
  • योग केवल शरीर के लिए ही नहीं बल्कि मन और आत्मा के लिए भी एक व्यायाम है।
  • योग का अभ्यास करके व्यक्ति तनाव और शारीरिक बीमारियों सहित कई चुनौतियों से निपट सकता है।
  • योग मांसपेशियों को लचीला बनाने में मदद करता है, वजन कम करता है और त्वचा के स्वास्थ्य में भी सुधार करता है।
  • योग धैर्य और एकाग्रता विकसित करने में मदद करता है, स्मरण शक्ति तेज करता है और हमारे जीवन में शांति लाता है।
  • प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • यदि कोई प्रतिदिन योग का अभ्यास करता है, तो वह एक संतुलित जीवन जीने की राह पर है।

योग - जीवन चक्र

जीवन भर प्रकृति से जुड़े रहने के लिए योग प्राचीन काल से ही प्रकृति द्वारा दिया गया सबसे महत्वपूर्ण और अनमोल उपहार है। यह मन और शरीर को एकजुट करने का अभ्यास है। यह शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से शरीर पर नियंत्रण रखकर व्यक्ति को उच्च स्तर की चेतना प्राप्त करने में भी मदद करता है। छात्रों की बेहतरी के लिए और अध्ययन के प्रति उनकी एकाग्रता के स्तर को बढ़ाने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में प्रतिदिन अभ्यास करने के लिए योग को बढ़ावा दिया गया है। शरीर में सभी प्राकृतिक तत्वों पर नियंत्रण प्राप्त करके पूर्णता प्राप्त करने के लिए लोगों द्वारा किया गया एक व्यवस्थित प्रयास है योग।

योग किसी के भौतिक अस्तित्व और आध्यात्मिक विवेक के बीच सामंजस्य का अंतिम कार्य है। मन और शरीर के बीच सही तालमेल को योग के रूप में जाना जाता है। व्यायाम के एक भौतिक रूप से अधिक, इसे एक आध्यात्मिक क्रिया के रूप में माना जाता है जो आपको स्वयं के बारे में जागरूक करता है। जब हमारा दिमाग शांत होता है तो हम जो गहन आत्मनिरीक्षण करते हैं, वह हमें अपने भीतर से जुड़ा हुआ महसूस कराता है। सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान प्राचीन भारत में योग ने आकार लिया। मूल रूप से योग का अभ्यास करने वाले हिंदू पुजारियों द्वारा इसे विस्तार से उल्लेखित किए जाने के बाद यह लोकप्रिय हो गया। भारत में योग को व्यायाम के रूप के बजाय जीवन पद्धति के रूप में अपनाया गया है।

लोग आध्यात्मिक, स्वास्थ्य और ध्यान संबंधी लाभों के लिए योग का अभ्यास करते हैं। विभिन्न मुद्राओं या आसनों का संयोजन योग का सार है। पारंपरिक योग में 84 आसन हैं, लेकिन अनुमान 400 से लेकर एक हजार तक कुछ भी हो सकता है यदि हम योग को दस्तावेज के रूप में दर्ज करने वाले शास्त्रों तक पहुंच पाएं। योग की शुरुआत चरम ध्यान के कार्य के रूप में हुई थी जो अब विश्राम के साधन के रूप में लोकप्रिय हो गया है।

पश्चिमी देशों ने अनगिनत स्वास्थ्य लाभ देखते हुए योग को आसानी से अपना लिया है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में ही हजारों योग विद्यालय हैं जो योग की कला सिखाते हैं। जबकि योग का अभ्यास कोई घर पर भी कर सकता है हांलाकि जटिल आसनों के लिए कुछ अभ्यास की आवश्यकता होती है। अध्यात्म भी योग में गहरे तक पैठ कर चुका है क्योंकि जब हमारे मन और शरीर में पूर्ण सामंजस्य में होता है, तो हमें दिव्य शांति की अनुभूति होती है जिसे संस्कृत में ‘मोक्ष’ कहा जा सकता है। योग का उद्देश्य हमारे शरीर से किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म कर हमें खुद से जोड़ना है। यह सलाह दी जाती है कि हमें योग करते समय जमीन पर बैठना चाहिए क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा जमीन पर स्थानांतरित हो जाती है।

योग के सभी आसनों को सीखने के लिए बहुत ही सुरक्षित और नियमित अभ्यास की आवश्यकता होती है। आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित करके आत्म-विकास के लिए शरीर और मन में आध्यात्मिक प्रगति लाने के लिए योगाभ्यास किया जाता है। योग के दौरान ऑक्सीजन को अंदर लेना और छोड़ना मुख्य क्रिया है। दैनिक जीवन में योग का अभ्यास नियमित रूप से विभिन्न रोगों से बचाव के साथ-साथ कैंसर, मधुमेह, उच्च या निम्न रक्तचाप, हृदय रोग, किडनी विकार, यकृत विकार, स्त्री रोग संबंधी समस्याओं और विभिन्न प्रकार की मानसिक समस्याओं सहित घातक बीमारियों के इलाज में सहायक होता है।

आजकल लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए योगाभ्यास करना जरूरी है। दैनिक योगाभ्यास से शरीर को आंतरिक और बाहरी शक्ति प्राप्त होती है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है, और विभिन्न बीमारियों से बचाता है और उनका इलाज करता है। यदि लगातार अभ्यास किया जाए तो योग चिकित्सा की एक वैकल्पिक प्रणाली के रूप में कार्य करता है। यह रोजाना ली जाने वाली कई भारी दवाओं के दुष्प्रभाव को भी कम करता है। योग जैसे प्राणायाम और कपाल भाती के अभ्यास के लिए सुबह का समय अच्छा होता है, क्योंकि यह शरीर और मन को नियंत्रित करने के लिए बेहतर वातावरण प्रदान करता है।

योग - प्रमुख अभ्यास

योग आपके जीवन को आकार में रखने के लिए एक जोखिम-मुक्त, सरल और स्वस्थ तरीका है। आवश्यक्ता इस बात की है कि उचित श्वास और गति के पैटर्न के साथ लगातार योग का अभ्यास किया जाए। योग हमारे शरीर के तीनों भागों: शरीर, मन और आत्मा के बीच एक सुसंगत कड़ी स्थापित करता है।योग नकारात्मक परिवेश और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के कारण शरीर और मन को अशांत होने से रोकता है शरीर के सभी अंगों के कार्यों को विनियमित करता है । यह शारीरिक कल्याण, ज्ञान और आंतरिक शांति को बढ़ावा देता है। हमारी शारीरिक ज़रूरतें अच्छे स्वास्थ्य से पूरी होती हैं और हमारी मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें ज्ञान से पूरी होती हैं वहीं हमारी आध्यात्मिक ज़रूरतें आंतरिक शांति से पूरी होती हैं, जो सभी के बीच सद्भाव बनाए रखने में योगदान देती हैं। जब हम अच्छा महसूस करते हैं तो हमारे सामाजिक कल्याण में सुधार होता है। योग की उत्पत्ति

भारतीय उपमहाद्वीप वह स्थान है जहाँ योग पहली बार प्रकट हुआ था। योगियों द्वारा आदिकाल से ही इसका अभ्यास किया जाता रहा है। शब्द “योग” एक संस्कृत शब्द से लिया गया है जिसका अनिवार्य अर्थ “एकता और अनुशासन” है। योग का अभ्यास जैनियों, बौद्धों और हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा भी किया गया । योग धीरे-धीरे पश्चिमी देशों तक भी पहुंच गया । तब से, दुनिया भर के लोग ने अपने मन को शांत करने और शारीरिक फिटनेस बनाए रखने के लिए योग का अभ्यास कर रहे हैं । योग की बढ़ती लोकप्रियता के परिणामस्वरूप भारत ने एक योग महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की है । योग के फायदों को देखकर ज्यादा से ज्यादा लोग जागरुक हो रहे हैं।

योग के चार प्रमुख अभ्यास

  1. हठ योग
    हठ योग, योग का एक उपसमुच्चय है जो जीवन शक्ति या ऊर्जा के संचरण और संरक्षित करने के लिए भौतिक तरीकों का उपयोग करने पर केंद्रित है। योग की वह शैली जो सबसे अधिक अभ्यास में लाई जाती है वह है हठयोग । यह एक धीमी गति वाला योग है जिसमें सांस लेने के व्यायाम और स्ट्रेचिंग शामिल हैं।
  2. कुंडलिनी योग
    कुंडलिनी योग आध्यात्मिक जागरण को प्रोत्साहित करता है। कुंडलिनी योग के विभिन्न फायदे हैं जो अनुसंधान द्वारा सत्यापित किए गए हैं। शोध बताते हैं कि यह संज्ञानात्मक कार्य, आत्म-धारणा और आत्म-प्रशंसा को बढ़ाते हुए चिंता और तनाव को कम कर सकता है। योग की इस शैली में श्वास लेने के व्यायाम पर जोर दिया जाता है जो जल्दी -जल्दी और बार-बार किए जाते हैं। एक खास तरीके से लगातार सांस लेते हुए एक खास मुद्रा बनाए रखनी चाहिए।
  3. अष्टांग योग
    अष्टांग योग शारीरिक सहनशक्ति के निर्माण और मांसपेशियों को मजबूत बनाने पर केंद्रित है। आपका शरीर अष्टांग अभ्यास से नवीनीकृत हो जाता है और अधिक विनियमित, टोंड, लचीला और मजबूत हो जाता है। पहली शृंखला की कई मुद्राएं विकृतियों से मिलती-जुलती हैं और इसके लिए एक मजबूत भुजा और कोर की मांसपेशियों की आवश्यकता होती है। प्रत्येक शिष्य इसके छह संभावित अनुक्रमों में से एक का प्रदर्शन कर सकता है।
  4. बिक्रम योग
    बिक्रम चौधरी द्वारा विकसित और बीसी घोष की शिक्षाओं के आधार पर, बिक्रम योग वह शैली है जो ऊष्मा प्रदान करती है । यह योग की वह शैली है जिसका उपयोग व्यायाम के रूप में किया जाता है। इसने पहली बार 1970 के दशक की शुरुआत में लोकप्रियता हासिल की। बिक्रम योग, जिसे अक्सर हॉट योगा के रूप में जाना जाता है, का अभ्यास ऐसे स्थान पर किया जाता है जिसका तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। आसनों के परिणामस्वरूप आपका शरीर अधिक लचीला हो जाता है, जिससे आपको पसीना भी आता है और जिससे आपको फैट बर्न करने में मदद मिलती है।

कराटे का इतिहास

माना जाता है कि कराटे की उत्पत्ति ओकिनावा द्वीप समूह में करीब पांच सौ वर्ष पहले हुई। ओकिनावा, जो एक छोटा सा प्रांत था जो मध्य और पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंधों का केंद्र था। इसलिए यह स्थान तमाम जानकारियों और संघर्ष की कलाओं के संग्रह स्थल के रूप में विकसित हुआ।

कराटे के शुरुआती तत्वों में चीनी, जापानी और ओकिनावन मार्शल आर्ट के प्रभाव शामिल हैं। प्राचीनकाल में ओकिनावा द्वीप हमेशा युद्ध के लिए तत्पर रहा है और इसलिए उनके यहां मार्शल आर्ट की आवश्यकता उत्पन्न हुई।

ओकिनावन लोगों में अपने प्राचीन मार्शल आर्ट को "तोदी" या "ओकिनावन हाथ" के रूप में जाना जाता था। यह तकनीक, शरीर के इस्तेमाल और मनोवैज्ञानिक दबाव के माध्यम से हमला करने की कला थी।

कराटे का इतिहास काफी लंबा और जटिल है, जिसकी जड़ें ओकिनावा, जापान के द्वीपों तक जाने जा जाती हैं। कराटे का प्राचीनतम स्वरूप ओकिनावा के लोगों के लिए एक आत्मरक्षा शैली के रूप में विकसित किया गया था जिन्हें जापानी सरकार द्वारा हथियारों पर पाबंदी के बाद प्रयोग में लाया जाता था।

समय के साथ, कराटे एक अधिक परिष्कृत मार्शल आर्ट के रूप में विकसित हुआ, जिसमें चीनी मार्शल आर्ट की तकनीकों को भी शामिल किया गया। 20वीं सदी की शुरुआत में, कराटे को उसकी मुख्य भूमि जापान में गिचिन फुनाकोशी द्वारा पेश किया गया था, जिन्हें "आधुनिक कराटे का जनक" माना जाता है। फुनाकोशी की कराटे शैली, जिसे शोटोकन कहा जाता है, जापान में बहुत लोकप्रिय हुई और अंततः दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गई।

आज, कराटे की विभिन्न शैलियाँ हैं, प्रत्येक की अपनी विशेष तकनीकें और दर्शनशास्त्र हैं। हालांकि, सभी कराटे की शैलियाँ आत्मरक्षा, अनुशासन और शारीरिक फिटनेस पर एक सामान्य ध्यान केंद्रित करती हैं।

कराटे के इतिहास की संक्षिप्त समयावधि

दिनांक अवसर
13वीं शताब्दी कराटे के प्राचीनतम रूप ओकिनावा में विकसित होना
17वीं शताब्दी कराटे को संरक्षित किया गया है और यह एक परिष्कृत मार्शल आर्ट बन गया
20वीं सदी का प्रारंभिक दशक गिचिन फुनाकोशी द्वारा कराटे को मुख्य रूप से जापान में प्रस्तुत किया गया
1950 का दशक कराटे संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया के अन्य हिस्सों में लोकप्रिय हुआ
1964 कराटे को टोक्यो ओलंपिक में एक प्रदर्शनी खेल के रूप में शामिल किया गया
2020 कराटे को टोक्यो ओलंपिक में एक आधिकारिक खेल के रूप में शामिल किया गया

कराटे के इतिहास की कुछ सबसे महत्वपूर्ण हस्तियां

  • गिचिन फुनाकोशी: "आधुनिक कराटे के जनक"। उन्होंने कराटे को जापान में प्रस्तुत किया और शोटोकन शैली को विकसित किया।
  • अंको इतोसु: कराटे के एक महान गुरु थे, जिन्होंने ओकिनावा में कला को प्रसिद्ध करने में मदद की।
  • केनवा माबुनी: कराटे के एक महान गुरु थे, जिन्होंने शिटो-रियू शैली को विकसित किया।
  • मसुतात्सु ओयामा: कराटे के एक महान गुरु थे, जिन्होंने क्योकुशिन शैली की स्थापना की।
  • हिरोकाज़ू कानाज़ावा: कराटे के एक महान गुरु थे, जिन्होंने शोटोकन शैली को विश्वभर में फैलाया।

17वीं शताब्दी तक कराटे को व्यवस्थित किया गया और यह एक उच्चकोटि का मार्शल आर्ट बन गया। इसके बाद से कराटे में नई तकनीकों का विकास हुआ और इसे समृद्ध किया गया।

20वीं सदी की शुरुआत में, गिचिन फुनाकोशी ने कराटे को मुख्य जापान में प्रस्तुत किया। उन्होंने शोटोकन शैली को विकसित किया, जो आज भी सबसे प्रसिद्ध और प्रचलित कराटे शैलियों में से एक है।

कराटे - मार्शल आर्ट

कराटे एक जापानी शब्द है जो कि जापान की प्राचीन मार्शल आर्ट के लिए प्रयोग किया जाता है। कराटे की उत्पत्ति ओकिनावा नामक द्वीप पर हुई। कराटे का मतलब होता है स्वयं को संभालने की कला। कराटे शारीरिक और मानसिक संतुलन को विकसित करने का मार्ग है और यह योग्यता, शक्ति, साहस और समर्पण की कला है। यह स्वयं को सुरक्षित रखने, अपनी आत्मा के विकास के लिए और शांति और समय की एकजुटता की प्राप्ति के लिए भी जाना जाता है।

कराटे का उद्देश्य व्यक्तिगत विकास और दृढ़ता के साथ-साथ युद्ध के लिए अभ्यास करना है। कराटे, कठोर प्रशिक्षण और नैतिक मूल्यों का ध्यान रखते हुए अलग-अलग तकनीकों, धार्मिक तत्त्वों और संस्कृति के साथ मिलकर विकसित होता है। इसकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान ने इसे एक प्रभावशाली मार्शल आर्ट बना दिया है।

कराटे के मूल तत्व एकाग्रता, सही तरीके और शक्ति के साथ अभ्यास करने के लिए होते हैं। इससे शरीर के विभिन्न हिस्सों का विकास होता है |

कराटे एक मार्शल आर्ट है जो पंच, किक, कोहनी, घुटने और खुले हाथ की तकनीकों का उपयोग करती है। कराटे आत्मरक्षा और अनुशासन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी जाना जाता है।

शब्द "कराटे" का जापानी में अर्थ होता है "खाली हाथ"। इसका मतलब यह है कि कराटे एक मार्शल आर्ट है जो हथियारों का उपयोग नहीं करता। इसके स्थान पर, यह अभ्यासकर्ता के अपने शरीर की फुर्ती पर निर्भर करता है जिससे वह अपने शरीर की रक्षा कर सकते हैं ।

कराटे एक बहुत ही सक्रिय मार्शल आर्ट है। इसका उपयोग आत्मरक्षा, फिटनेस और प्रतिस्पर्धा के लिए किया जा सकता है। कराटे की विभिन्न शैलियां हैं, प्रत्येक की अपनी विशेष तकनीकें और दर्शन है।

कराटे की कुछ प्रसिद्ध शैलियों में शोटोकन-रयु, शिटो-रयु, गोजु-यू और वाडो-यू शामिल हैं। शोटोकन-रयु सबसे व्यापक शैली है |

‘कराटे’ एक युद्ध कला है। किंतु इस कला की शुरुआत कब, कहां और कैसे हुई, इस बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं है। इस संबंध में कईं कहानियां प्रचलित हैं।

कहा जाता है कि कराटे का जन्म भारत के केरल राज्य में हुआ। हम भारतीय मार-पीट में ज्यादा विश्वास नहीं करते, इसलिए कराटे पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। कराटे वास्तव में काफी खतरनाक खेल है। थोड़ी सी असावधानी से हाथ, पैर, गर्दन, और नाक तक टूट सकती है। भारत में इसका सही ढंग से प्रचार-प्रसार नहीं हुआ तो धीरे-धीरे लोग कराटे को भूलते गए।

ऐसा कहा जाता है कि छठी शताब्दी में बोधिधर्म नाम का एक बौद्ध भिक्षु हुआ था। बोधिधर्म धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चीन की यात्रा पर गया हुआ था। चीन में उसने आवश्यकता से अधिक अनुशासन देखा। वहां के लोगों की जिंदगी मशीनी बनकर रह गई थी। उनका स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता था।

बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म को चीन के लोग काफी अजीब लगे। उसने वहां दो पुस्तकें तैयार की। पहली पुस्तक का नाम प्राणायाम और दूसरी का नाम शक्तिवर्धन था। उन पुस्तकों में शरीर स्वस्थ कैसे हो और स्वस्थ शरीर के क्या-क्या लाभ हैं - यह बातें बताई गई हैं। उस पुस्तक में यह भी बताया गया है कि शरीर की सारी शक्ति किसी भी अंग में कैसे संचित और प्रवाहित की जा सकती है।

उन दोनों पुस्तकों से चीन के लोगों को बड़ा लाभ मिला। पुस्तकों में बताई गई बातों को वहां के लोगों ने ध्यान से पढ़ा और समझा। इससे लोग बड़े ही शक्तिशाली होने लगे। वह अपनी सुरक्षा स्वंय करना सीख चुके थे। किसी भी हथियार का सहारा लेना वह अपना अपमान समझते थे। वह जिस ढंग से अपने शत्रुओं पर प्रहार करते हैं, उस ढंग को कराटे का नाम दिया गया।

ताईक्वांडो क्या है ?

ताईक्वांडों (TKD) दुनिया भर के लाखों लोगों द्वारा अभ्यास की जाने वाली सबसे लोकप्रिय मार्शल आर्ट में से एक है। ताईक्वांडो एक सैन्य युद्ध प्रणाली के रूप में 1950 के दशक में दक्षिण कोरिया में विकसित की गई मार्शल आर्ट है। ज्यादातर लोग ताईक्वांडो को एक ऐसी प्रणाली के रूप में जानते हैं जो तेज और शक्तिशाली किक पर जोर देती है जो बचाव का एक प्राथमिक हथियार है । इसमें हैंड स्ट्राइक भी शामिल है, लेकिन ये किक की तरह महत्वपूर्ण नहीं हैं।

वर्ष 2000 में, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित ओलंपिक खेलों में ताईक्वांडो की शुरुआत हुई और तब से यह खेलों का एक हिस्सा है।

ताईक्वांडो की विभिन्न शैलियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए इसके इतिहास और विकास पर करीब से नज़र डालनी चाहिए।

ताईक्वांडो के प्रकार-

  1. क्योरुगी (Sparring) ताईक्वांडो
    यह ताईक्वांडो का एक प्रमुख प्रकार है जिसमें दो प्रतिद्वंदियों के बीच स्पारिंग मुकाबला होता है। इसमें हथेलियों और पैरों का प्रयोग होता है जिसके माध्यम से विभिन्न अंक प्राप्त किए जाते हैं।
  2. पूल (Forms) ताईक्वांडो
    यह अकेले में किया जाने वाला ताईक्वांडो का प्रकार है, जहां एक प्रतियोगी संकल्पनाओं, तकनीकों, और गतिविधियों की एक आवृत्ति को प्रदर्शित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य संगठित ताईक्वांडो तकनीकों को सही तरीके से प्रदर्शित करना और मन की शांति और एकाग्रता का विकास करना है।
  3. ब्रेकिंग (Breaking) ताईक्वांडो
    इस प्रकार के ताईक्वांडो में, प्रतियोगी को दिए गए बोर्ड ,ईंट आदि को तोड़ने की क्षमता प्रदर्शित करनी होती है। यह शक्ति, तकनीक और सहनशीलता का मापदंड भी होता है।
  4. फ्रीस्टाइल (Freestyle) ताईक्वांडो
    फ्रीस्टाइल (Freestyle) ताईक्वांडो एक आधुनिक ताईक्वांडो का प्रकार है जहां क्रियाशील और रचनात्मक तकनीकों का प्रयोग करते हुए प्रतियोगी एक प्रदर्शन करता है। इसमें ताईक्वांडो के नियमों को छोड़कर आदर्शों और अभिप्रेत तकनीकों का उपयोग किया जाता है। प्रतियोगी को अपने संगठन, समर्थन, और रचनात्मकता को प्रदर्शित करने का स्वतंत्रता दी जाती है, जिससे उन्हें अपनी खुद की पहचान और शैली विकसित करने का मौका मिलता है। फ्रीस्टाइल ताईक्वांडो में चुनौतीपूर्ण तकनीकें, एयरबोर्न तकनीकें, समर्पित तकनीकें और अन्य उच्च स्तरीय तकनीकें शामिल हो सकती हैं। ताईक्वांडो का यह प्रकार प्रतियोगिताओं, डेमोन्स्ट्रेशन शौर्य, और कला प्रदर्शनों के लिए भी आदर्श है। आपके लिए ताईक्वांडो की सबसे अच्छी शैली आपकी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और लक्ष्यों पर निर्भर करेगी। यदि आप ओलंपिक खेल प्रतिस्पर्धा में भाग लेने में रुचि रखते हैं तो डब्ल्यूटी ताइक्वांडो आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। यदि आप आत्मरक्षा पर ध्यान देने के साथ ताईक्वांडो की पारंपरिक शैली की तलाश कर रहे हैं, तो आईटीएफ ताईक्वांडो एक अच्छा विकल्प है। यदि आप ताईक्वांडो की एक संकर या मिश्रित शैली की तलाश कर रहे हैं जो डब्ल्यूटी और आईटीएफ के सर्वश्रेष्ठ जोड़ एटीए ताईक्वांडो एक अच्छा विकल्प है। और अगर आप ताईक्वांडो की जड़ों के बारे में जानने में रुचि रखते हैं, तो पारंपरिक ताईक्वांडो एक अच्छा विकल्प है।

ताइक्वांडो का इतिहास

ताइक्वांडो (Taekwondo) एक कोरियाई शब्द है जो तीन शब्दों से मिलकर बना है Tae-kwon-do जहां 'Tae' का अर्थ पैर होता है या क़दम आगे बढ़ाना होता है, 'Kwon' का अर्थ मुक्का मारना या लड़ाई है और 'Do' का अर्थ है तरीक़ा या अनुशासन। ताईक्वांडो एक प्रमुख एशियाई मार्शल आर्ट है जो दक्षिण कोरिया से प्रारंभ हुई और अब सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हो गई है। यह विभिन्न शस्त्र विद्याओं और हथियारों के साथ लड़ने की तैयारी की एक खेल तकनीक को विकसित करती है। ताईक्वांडो विशेष तरीके से हाथ और पांव की उपयोगिता पर जोर देता है।

ताईक्वांडो का इतिहास बहुत पुराना है। यह दक्षिण कोरिया में विकसित हुआ और 20वीं सदी के प्रारंभ में इसे आधिकारिक रूप से मान्यता मिली। ताईक्वांडो को वर्तमान में एक खेल के रूप में संरक्षित करने के लिए दक्षिण कोरिया की सरकार ने प्रमाणित किया है।

कई वर्षों के बाद अब ताईक्वांडो एक प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय खेल बन गया है। ताईक्वांडो की मुख्य विशेषता यह है कि यह खुले हाथों और पैरों का उपयोग करके प्रतिद्वंदी को रोकने के लिए मुकाबला करने वाला एक युद्ध खेल है। ताईक्वांडो शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "किकिंग और पंच करने का तरीका”। इसमें तेज और मजबूत कोणीय गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जो सुंदरता और शक्ति का संतुलन उत्पन्न करती हैं इसकी सभी गतिविधियाँ मूल रूप से शत्रु के हमलों से सुरक्षित रहने के लिए विकसित गई हैं।

ताईक्वांडो के बारे में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह केवल एक उत्कृष्ट स्वरक्षण कला ही नहीं है, बल्कि मस्तिष्क पर भी विजय प्राप्त करने की कला है।

ताईक्वांडो का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

ताईक्वांडो का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

ताईक्वांडो का अंतर्राष्ट्रीयकरण कई वर्षों के बाद हुआ है। यह एक प्रसिद्ध खेल होने के साथ-साथ एक सामरिक मार्शल आर्ट भी है। ताईक्वांडो के अंतर्राष्ट्रीयकरण में प्रमुख भूमिका ओलंपिक खेलों की है, जहां ताईक्वांडो को अब एक महत्वपूर्ण खेल के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई है।

विश्व ताईक्वांडो फेडरेशन (World Taekwondo Federation) और अन्य महत्वपूर्ण संगठनों की सहायता से, ताईक्वांडो के खिलाड़ी अब विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं, विश्व चैम्पियनशिप्स, और कांटिनेंटल टूर्नामेंट्स में प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह खेल विभिन्न देशों में लोकप्रिय हो चुका है और उन्हें ताईक्वांडो की लोकप्रियता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मंच भी प्रदान किया जाता है।

ताईक्वांडो का अंतर्राष्ट्रीयकरण उसके आदिकाल से अब तक बड़ी कठिनाइयों और परिवर्तनों के साथ हुआ है, लेकिन नीचे दी गई सारिणी से यह सिद्ध होता है कि ताईक्वांडो अब एक विश्वस्तरीय और प्रभावी खेल बन गया है |

दिनांक अवसर
30 नवम्बर , 1972 कुक्कीवॉन बिल्डिंग- विश्व ताईक्वांडो मुख्यालय का गठन
25 मई, 1973 पहली विश्व ताईक्वांडो चैम्पियनशिप आयोजित की गई
28 मई, 1973 विश्व ताईक्वांडो फेडरेशन की स्थापना हुई
18 अक्टूबर, 1974 पहली एशियाई ताईक्वांडो चैम्पियनशिप आयोजित की गई
5 अक्टूबर, 1975 विश्व ताईक्वांडो फेडरेशन जनरल एसोसिएशन ऑफ इंटरनेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन (जीएआईएसएफ) का संबद्ध संगठन बन गई
9 अप्रैल, 1976 सीआईएसएम (काउंसिल इंटरनेशनल स्पोर्टिव मिलिटेर) की कार्यनिर्धारक समिति ने ताईक्वांडो को एक आधिकारिक खेल के रूप में स्वीकार किया
17 जुलाई, 1980 विश्व ताईक्वांडो फेडरेशन को मॉस्को में आयोजित इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी (आईओसी) के 83 वें आम सत्र में मान्यता प्राप्त हुई
24 जुलाई, 1981 ताईक्वांडो वर्ल्ड गेम्स (गैर-ओलंपिक खेल) में सांता क्लारा में शामिल

ताईक्वांडो ने इतनी प्रगति कर ली है कि इसे 1988 और 1992 के ओलंपिक में एक प्रदर्शन खेल के रूप में पेश किया गया था और इसके बाद पहली बार पूर्ण पदक खेल के रूप में ताईक्वांडो सिडनी 2000 ओलंपिक का हिस्सा बना।

ताईक्वांडो

ताईक्वांडो एक प्रमुख मार्शल आर्ट है जिसकी उत्पत्ति दक्षिण कोरिया में हुई । यह एक लड़ाई या युद्ध की कला है जो शारीरिक ताकत, संतुलन, तेजी और मार्गदर्शन करने की कला को समाहित करती है। ताइक्वांडो आक्रामक और रक्षात्मक तकनीकों का उपयोग करता है जिसमें पंच , ट्रांक और बोअ शामिल हैं। इसका स्वतंत्र रूप से अभ्यास किया जा सकता है या ताइक्वांडो के संघों या स्कूलों में शामिल होकर भी सीखा जा सकता है। यह एक लोकप्रिय खेल और सेलेब्रिटी मार्शल आर्ट है । ताईक्वांडो (Taekwondo) एक कोरियाई शब्द है जो तीन शब्दों से मिलकर बना है: Tae-kwon-do जहां 'Tae' का अर्थ पैर होता है या क़दम आगे बढ़ाना होता है, 'Kwon' का अर्थ मुक्का मारना या लड़ाई है और 'Do' का अर्थ है तरीक़ा या अनुशासन।

ताईक्वांडो में, प्रतिद्वंद्वी को मात देने के लिए हाथों और पैरों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इस खेल की ख़ास पहचान इसके किक मूवमेंट का तालमेल है।

ताईक्वांडो का आविष्कार कब, कहां और किसने किया था?

ताईक्वांडो की उत्पत्ति कोरिया के थ्री-किंगडम युग (c.50 ईसा पूर्व) में हुई, जब शिल्ला राजवंश के योद्धा ह्वारंग ने एक मार्शल आर्ट के रूप में विकसित करना शुरू किया जिसका नाम था ताइक्योन ( अर्थ- "पैर-हाथ")।

ताईक्वांडो कला एक कोरियाई मार्शल कला है | इस खेल में दो खिलाड़ी एक दूसरे पर अपनी लात का प्रयोग करके लड़ते हैं |सामने वाले खिलाड़ी को प्रहार करके मैट से बाहर ले जाने या जमीन पर गिराने की कोशिश की जाती है | इसमें सिर तक की किक, कूदकर घूमते हुए मारने वाली किक और तेज तर्रार किक का प्रयोग होता है |

इस कला का अविष्कार 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किया गया था | हालांकि धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया में फैल गई | आज ताईक्वांडो को 200 से अधिक देशों में लगभग आठ करोड़ लोग सीखते और खेलते हैं | जो पांचों महाद्वीप (अफ्रीका, एशिया, यूरोप, पैन अमेरिका और आस्ट्रेलिया ) के संगठन द्वारा प्रशासित हैं और जो इसे दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक बनाता है | इस खेल को सफ़ेद डोबोक(एक तरह की जैकेट) पहन कर नंगे पैर खेला जाता है | सिर को बचाने के लिए हेलमेट का प्रयोग किया जाता है जिसे होमयुन कहते हैं और पेट को बचाने वाले गद्देदार जैकेट को होगु कहते हैं |

मैचों में दो-दो मिनट के तीन राउंड होते हैं, जिसमें प्रत्येक राउंड के बीच एक मिनट का ब्रेक होता है | ताईक्वांडो के प्रोटेक्टर और स्कोरिंग सिस्टम या PSS को पहली बार लंदन 2012 ओलंपिक प्रतियोगिता के लिए अपनाया गया था | इस पीएसएस सिस्टम में इलेक्ट्रानिक सेंसर होते हैं जो शरीर के स्कोरिंग के हिस्से में किक लगने पर अंक तय करते हैं | ओलंपिक खेलों में पहली बार, सभी मैचों को कवर करने के लिए ताईक्वांडो कोर्ट में एक 4D कैमरा स्थापित किया गया | यह सिस्टम एक्शन को 360-डिग्री पर स्कैन करता है | जिससे दर्शकों को एथलीटों के शानदार कलाबाजी के हर कोण को देखने में मदद मिलती है | उच्च तकनीक का उपयोग करके प्रतियोगिता को एक नये स्वरूप में पेश किया जा रहा है।

मार्शल आर्ट

मार्शल आर्ट या युद्ध कलाएँ बचाव के लिए सीखी जानें वाली विधिवत कलाएं हैं । सभी मार्शल आर्ट्स का उद्देश्य एक ही है - स्वयं की या दूसरों की किसी शारीरिक ख़तरे से रक्षा करना । मार्शल आर्ट को विज्ञान और कला दोनों ही माना जाता है। इनमें से कई कलाओं का प्रतिस्पर्धात्मक अभ्यास भी किया जाता है । इनका प्रदर्शन ज़्यादातर लड़ाई के खेल के रूप में किया जाता है लेकिन ये नृत्य का रूप भी ले सकती हैं।

मार्शल आर्ट्स का मतलब युद्ध की कला से है और यह लड़ाई की कला से जुड़ा पंद्रहवीं शताब्दी का यूरोपीय शब्द है जिसे आज ऐतिहासिक यूरोपीय मार्शल आर्ट्स के रूप में जाना जाता है। मार्शल आर्ट के एक कलाकार को मार्शल आर्ट आर्टिस्ट भी कह सकते हैं।

मूल रूप से 1920 के दशक में रचा गया शब्द मार्शल आर्ट्स मुख्य तौर पर एशिया में प्रचलित युद्ध के तरीकों के संदर्भ में था, विशेष तौर पर पूर्वी एशिया में जन्मे युद्धों के तरीकों पर | मार्शल आर्ट की उत्पत्ति कहां हुई है इसकी परवाह किये बगैर इस शब्द को किसी भी संहिताबद्ध युद्ध प्रणाली के लिए शाब्दिक अर्थ और उसके बाद के उपयोग में लिया जा सकता है।

यूरोप मार्शल आर्ट्स की कई व्यापक प्रणालियों का घर है। यूरोप की ऐतिहासिक मार्शल आर्ट्स की जीवंत परंपराएं और पुराने तरीके जो आज भी अस्तित्व में हैं, उनमें से कई का अब फिर से निर्माण किया जा रहा है। बात अगर अमेरिका की करें तो मूल अमेरिकियों के बीच खुले हाथों की मार्शल आर्ट्स जिसमें कुश्ती शामिल है और हवाई लोगों में ऐतिहासिक रूप से अभ्यास में लाई जा रही कलाएं जिनमें छोटे और बड़े संयुक्त जोड़-तोड़ होते की प्रथा है। केपोएईरा के पहलवानी खेलों में मूल का मिश्रण पाया जाता है, जिसे अफ्रीकी गुलामों ने अपने अफ्रीकी कौशल से ब्राज़ील में विकसित किया।

प्रत्येक मार्शल आर्ट शैली के अद्वितीय पहलू उसे दूसरी मार्शल आर्ट्स से अलग बनाते हैं, लेकिन लड़ाई की तकनीकों का प्रबंधन एक ऐसा पहलू है जो सभी शैलियों में पाया जाता है। विभिन्न मार्शल आर्ट में प्रशिक्षण के तरीके भिन्न-भिन्न होते हैं ।

युद्ध कलाएँ पारम्परिक पद्धतियाँ हैं जिन्हे विविध कारणों से व्यवहार में लाया जाता रहा है। इन्हें आत्मरक्षा, प्रतिस्पर्धा, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास आदि के लिये व्यवहार में लाया जाता है। विश्व में विभिन्न प्रकार की युद्ध कलाएँ प्रचलित हैं । जैसे भारत में युद्धकला को मल्लखम्ब, चीन में कुंग फू और जापान में कराटे के नाम से जानते हैं । हमारे पुराणों के मुताबिक मार्शल आर्ट का जनक भगवान परशुराम को माना जाता है|

मार्शल आर्ट्स व्यापक रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं और एक विशिष्ट क्षेत्र या क्षेत्रों के संयोजन पर केंद्रित हो सकती है, लेकिन इन्हे मोटे तौर पर हमले, प्रहार या हथियारों के प्रशिक्षण में वर्गीकृत किया जा सकता है। नीचे युद्ध कला की विभिन्न विधाओं की एक सूची दी गई है

प्रहार

  • मुक्केबाजी यानी बॉक्सिंग (पश्चिमी शैली)
  • कोहनी और घुटने से प्रहार- मुई थाई
  • मुक्त हाथ की विधियां- कराटे, शाओलिन , कूंग फू

कुश्ती

  • थ्रोइंग: ग्लिमा, जूडो, जूजूत्सु, संबो
  • ज्वाइंट लॉक / सबमिशन होल्ड: एकिडो, ब्राजील की जिउ-जित्सू, हपकिडो
  • पिनिंग तकनीक: जूडो, कुश्ती

हथियार

  • पारंपरिक हथियार शैली - तलवारबाजी, गटका, केंडो, क्वूडो, एस्करिमा
  • आधुनिक हथियार शैली: जुकेंड़ो, वुशु, शाओलिन, कूंग फू

कई मार्शल आर्ट्स विशेषकर एशिया से आने वाली कलायें लड़ाई के अलावा औषधीय पद्धतियों से संबंधित शिक्षा भी प्रदान करती है। यह मुख्य तौर पर पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट्स में प्रचलित हैं जैसे हड्डी बैठाना, किगोंग, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर (तूई ना) और पारंपरिक चीनी औषधियों के अन्य पहलू । मार्शल आर्ट्स को धर्म के साथ भी जोड़ा जा सकता है, उदाहरण के लिए सिख धर्म का अभिन्न अंग है गटका। सिख इतिहास से पता चलता है कि उन्हे जबर्दस्ती युद्ध में भेजा गया था। विंग चुन कुंग फू चीन में यात्रा कर रही ननों द्वारा खुद की रक्षा के लिए खोजा गया । इसी तरह कई जापानी मार्शल आर्ट्स जैसे ऐकिडो ऊर्जा और शांति के बहाव की मजबूत दार्शनिक आस्था पर आधारित है।